सन 1500 के आसपास का कोई समय
जलालुदीन अकबर का दरबार-
सारे दिये जल उठे!
दरबार मे उपस्थित जनता, मंत्री, बीरबल समेत शाही नवरत्नों में सारे लोग अपने -अपने स्थान से उठ कर तानसेन की और देखकर तालियां बजा रहे है।
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500 साल बाद
सन 2000
इतिहास खुद को दोहराने जा रहा है।
नटराज ने तालाब में हाथ पैर धोये और घी के तीन दिये अपने हाथों से देवी के सामने रखे। एक को उसने जला दिया और शेष दो वैसे ही रख दिये।
"तुम जानते हो तुम क्या कर रहे हो? "अप्सरा ने पूछा।
"कृपया मुझे ये कर लेने दें।" अप्सरा को प्रणाम करने के बाद नटराज बोला।
"तुम नही बचोगे!"
"जानता हूँ! लेकिन तुम भी जानती हो कि ,ये शरीर रहे न रहे आत्मा जरूर रहेगी।"
"ठीक है ! अगर ऐसा ही चाहते हो तो गाओ अपना -आखरी प्रेमगीत। मैं तुम्हारे साथ आखरी बार नृत्य करूंगी।"
दोस्तों प्रेमकहानियाँ तो आपने बहुत सी पढ़ी होगी, लेकिन आज हम जिस किताब की बात कर रहे है ये पुस्तक अपने आप मैं बहुत खाश है , इसे पढ़कर आपको महान संगीतज्ञ तानसेन जी की याद जरुर आएगी. क्यूंकि ये सिर्फ एक प्रेमकहानी ही नही बल्कि नायक नटराज का संगीत के प्रति समर्पण की अद्भुद कथा है ..
आज हम बात करेंगे अभिषेक जोशी जी की किताब आखरी प्रेमगीत की। जिसे प्रकाशित किया है फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशन्स ने।
कथानक- नायक नटराज अपने नाम के विपरीत , नृत्य छोड़कर , गायन में रुचि रखता है, और नायिका सरगम का भी यहीं हाल है , वो एक नृत्यांगना बनना चाहती है।
दोनों बचपन के दोस्त होते है, और एक साथ रियाज करते है ,और साथ ही कॉलेज भी जाते है।
जिंदगी में आये काफी उतार -चढाओं को पार करने के बाद
दोनों को एक दूसरे से प्यार भी हो जाता है.
लेकिन हर चीज़ की एक कीमत होती है। नटराज कैसे अपने प्रेम का मूल्य चुकाता है यहीं इस किताब का केन्द्रविंदु है ..
1 टिप्पणियाँ
प्रेम की एक अलग परिभाषा लिखते हुए किरदारों की कहानी।
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