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जलालुद्दीन रूमी एक महान सूफी संत थे , जो सितम्बर १२०७ में अफगानिस्तान के 'बल्ख' सहर में जन्मे थे ..
तेरहवीं शताब्दी में मंगोलं हमलों से बचने के लिए उनका परिवार अपना शहर बल्ख छोड़कर हजारों मील दूर तुर्की के एक कसबे कोन्या में रहने चला गया था।
रूमी के पिता 'बहा वलद' एक महान इंसान , दार्शनिक , व् लेखक थे..
रूमी के विचारों में अपने पिता की झलक भी मिलती हैं..
चालीस वर्ष की उम्र में इनकी मुलाकात एक अनोखे सूफी संत 'शम्स इ तबरेज ' से हुई और इनका पूरा जीवन दर्शन ही बदल गया . शम्स ने हीरूमी को इश्वर के प्रेम से परिचत करवाया और इनके गुरु भी बने.
अपने गुरु शम्स की प्रेरणा से लिखी इनकी रचनाओं 'मसनवी ' और 'दीवान -ए -शम्स -तबरेज ' का विश्व की अनेकों भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
साहित्य के जानकारों के अनुसार पिछले २०० वर्षों में इनकी अनुवादित पुस्तकों ने बिक्री के मामले में ने महान ब्रिटिश लेखक 'शेक्सपियर' को भी काफी पीछे छोड़ दिया हैं..
रूमी की कविताओं और विचारों में सूफ़ीवाद, रहस्यवाद और आध्यात्म की झलक मिलती है।
आज हम रूबरू होंगे जलालुद्दीन रूमी के कुछ अनमोल विचारों से।
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