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image source: A'S PHOTOGRAPHY |
एक दिन दोनों ने वनदेवी को साक्षी मानकर शादी कर ली, और अपने हरे भरे जंगल को छोड़कर फ्यूंली उसके साथ राजमहल चली गई।
फ्यूंली के जाते ही जंगल मे फूल खिलने बंद हो गए। पक्षियों ने अपना गान बंद कर दिया , मानो जैसे शौक मना रहे हो . पेड़-पौधे मुरझाने लगे, गाड - गधेरे सूखने लग गए।
फ्यूंली के दोस्त जंगली जानवर भी उसके जाने के वियोग में कोलाहल करने लग गए।
उधर दूसरी और महल में फ्यूंली ख़ुद भी अस्वस्थ रहने लगी।
उसने अपने पति से उसे वापस उसी पहाड़ के जंगलों छोड़ देने की विनती की, जहाँ से वो आई थी . लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी..
फिर एक दिन फ्यूंली के प्राण पखेरू उड़ गए । मरने से पहले उसने राजकुमार से एक विनती की, कि उसका शव उसके पहाड़, उसके जंगल में ही कहीं दफना दिया जाय।
फ्यूंली का शरीर राजकुमार ने पहाड़ की उसी चोटी पर जाकर दफनाया जहां से वो उसे लेकर आया था। जिस जगह पर फ्यूंली को दफनाया गया, कुछ महीनों बाद वहां एक फूल खिला, जिसे फ्यूंली नाम दिया गया।
इस फूल के खिलते ही पहाड़ की हरियाली वापस लौट आई , नदियाँ वापस पानी से भर गयी , और जंगल फिर से हरा -भरा हो गया ..
अपने घर और पूरे गांव की खुशहाली के लिए पहाड़ (गढ़वाल -कुमाऊँ ) की नवयुवतिया आज भी इसी फयूली के फूल से फूलदेई ( एक पर्व ) के दिन अपने घर के दरवाजे की पूजा करती हैं ..
1 टिप्पणियाँ
लोककथा पढ़ कर मुझे अपना बचपन याद आ गया, जब लाइब्रेरी से लोककथाओं की किताबें घर ला कर पढ़ते थे।
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