किताब समीक्षा कारीगर : वेद प्रकाश शर्मा
“ कोन हो तुम ?”
“नाम बताने से अगर मेरा काम चल जायेगा तो बताये देता हूँ -चक्रेश है मेरा नाम “
“कोन चक्रेश! “
“चक्कर चलाने वाला इश्वर “
कहानी का केंद्र चक्रेश नाम का एक आदमी है,जो एक दिन फिल्म निर्माता निर्देशक के महेश घोष के ऑफिस में बड़े ही भोकाली अंदाज में आ धमकता है।
रिवाल्वर निकाल कर फिल्मी अंदाज में वह महेश घोष से एक करोड़ रूपये लूट लेता है। वहां मौजूद सारे आदमियों को तो जैसे सांप सूंघ जाता है,सारे हक्के दक्के थे।
लेकिन तभी चक्रेश जोर -जोर से ठहाके लगाकर हँसने लगता है,और महेश घोष से कहता है -
“क - कैसी रही सर ! कैसी लगी मेरी एक्टिंग ?”
फिर जाके महेश बाबू को पता लगता है कि सामने वाला बंदा तो कोई स्ट्रगलर एक्टर है। और उन्हें अपनी एक्टिंग से प्रभावित करके उनकी फिल्म में कोई रॉल हासिल करना चाहता है।
लेकिन महेश घोष तो अभी तक सदमे में है।और झल्लाकर चक्रेश को वहां से बाहर निकाल देते है ।
लेकिन चक्रेश महेश घोष का पीछा इतनी आसानी से कहाँ छोड़ने वाला था।
ठीक उनकी बेटी चाँदनी की शादी की रात चक्रेश एसा चक्कर चलाता है कि महेश घोष की बेटी चांदनी की शादी टूट जाती है,उनकी बेटी सरे -आम बेइज्जत हो जाती है, उसकी घर आई बारात बारात लौट जाती है।
चक्रेश यहाँ भी नही ठहरता - अगले दिन वो फिर महेश बाबु के घर आता है।
भरी सभा में चांदनी से अपने प्यार का इज़हार करता है।
चाँदनी समेत सभी तो चुनोती देता है कि वो ऐसा चक्कर चलाएगा कि चांदनी उसके प्यार में पागल हो जाएगी।
और कोई भी उसका कुछ नही उखाड़ सकेगा।
उस पर मानहानि का केस भी होता है।
चक्रेश चक्कर चलाने की अपनी अद्भुद प्रतिभा के दम पर अदालत से भी बा- इज्ज़त बरी हो जाता है।
महेश बाबू अब अपनी बेटी चांदनी को कनाडा भेज देते है।
आप जो सोच रहें है बिल्कुल वही होता है।
चक्कर चक्कर वाला चक्रेश वहां भी पहुच जाता है।
दोस्तों फिर आगे क्या हुआ ये मैं आपको नही बता सकता, लेकिन इतना जरुर बता सकता हूँ कि ये कहानी आपका दिमाग 'हिलाकर' रख देगी।
और अगर आप सोच रहें है कि पूरी कहानी तो मैंने ही बता दी अब पढने के लिए क्या शेष रह गया ?
नही दोस्तों ! ये तो सिर्फ ट्रेलर था, असली कहानी जानने के लिए आपको पूरी किताब खुद पढनी पड़ेगी .
और जैसे फिल्मो के ट्रेलर दिखाए जाते है कोई जरुरी नही कहानी भी वेसी ही हो .
याद रखिये जैसा दिखता है आमतौर पर वैसा होता नही। खासतौर पर वेद प्रकाश जी की कहानियों की दुनिया में।
गौर कीजियेगा : ये कहानी मात्र एक सिरफिरे आशिक की प्रेमकहानी नही है!!
कहानी / कहानी कहने की कला / और पल पल खुलते रहस्यों की गुत्थी, कहानी में ऐसे -ऐसे मोड़ लेती है कि आप अंदाजा भी नही लगा सकते कि आगे क्या होने वाला है।
चक्रेश के फ़िल्मी डायलाग तो 'कहाँनी' और 'चाँदनी' के कलेजे में जैसे नमक का काम करते है।
उपन्यास पढ़ते -पढ़ते कभी आपको ये लगेगा कि चक्रेश से बड़ा शातिर व् हरामी आदमी आपने कभी नही देखा न कभी कहीं पढ़ा होगा।
चतुराई कहो या उसकी चालाकियाँ,!उसकी शातिर चलबाज़ीयाँ, रहस्य और रोमांच को इस कदर बढ़ा देते है, कि ३०० पन्नो का ये उपन्यास ,आप एक ही बार में पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाओगे। और अगर आपके पास पर्याप्त समय रहा तो पढ़ भी लोगे।
क्यूंकि कहानी के अंत तक रहस्य की परते खुलती नही,बल्कि और भी गहरी होती जाती है।
पाठक के लिए कल्पना करना भी मुश्किल हो जाता है कि आगे अब क्या होने वाला है।
और कहानी का अंत जिस धमाके के साथ होता है,उसकी कल्पना करना भी पाठको के लिए संभव नही ! अंत पढ़कर आप भी हिंदी उपन्यास के बेताज बादशाह - श्री वेद प्रकाश शर्मा के मुरीद हो जाओगे ।
वास्तव में वेद प्रकाश शर्मा जी हिंदी उपन्यास जगत के ऐसे कारीगर है जो भारतिय जनता के रग- रग से वाकिफ है।
वे अच्छी तरह जानते है कि पाठक क्या पढ़ना चाहते हैं।
चक्रेश , महेश घोष , चांदनी , शीतल आदि करैक्टर बहुत ही अच्छे से गड़े गये है, खाशकर गुटकु का चरित्र बहुत ही मजेदार है।
दमदार व प्रभावी संवाद तो जैसे इस उपन्यास की जान है।
हाँ एक-२ कमी मुझे जरुर लगी जो कि मैं आप लोगों से साँझा करना चाहूँगा
१- कनाडा में जब चक्रेश जग्गा के खून के जुर्म में अदालत पहुचता है तो उसके हाथों में हथकड़ी और पैरो में बेड़ियाँ होती है ( पैरों में बेड़ियाँ तो भारत में अंग्रेजों के ज़माने में पहनाई जाती थी.( और वो देश तो २१ वीं शदी का कनाडा है)
२ - चांदनी जब कडाना आती है तो चक्रेश ने उसके स्वागत के लिए आक्सीजन के गुब्बारे लगाये होते है .
( गुबारों में प्राय: हीलियम गैस भरी जाती है )
इन छोटी दो कमियों को अनदेखा किया जाय तो उपन्यास में सबकुछ सही है , रेटिंग की बात की जाय तो मैं कारीगर को ४/५ की रेटिंग देना चाहूँगा ..
अगर आप भी एक रोचक व रहस्यमयी उपन्यास पढ़ना चाहते है तो कारीगर अवश्य पढ़ें।
15 टिप्पणियाँ
मेरे लेख को अपने मंच पर सांझ करने के लिए आभार। प्रणाम स्वीकार करें 🙏
जवाब देंहटाएं'कारीगर' उपन्यास मैंने पढा है जो कि मुझे रोचक लगा। अच्छी समीक्षा, धन्यवाद ।।
जवाब देंहटाएंकारीगर समीक्षा- http://svnlibrary.blogspot.com/2017/12/86.html?m=1
प्रतिक्रिया देने के लिए आपका आभार 🙏
हटाएंबहुत बेहतरीन लिखा है आपने बिल्कुल वेद जी के नावेल के जैसे। कहानी तो वाकई जोरदार थी,रहस्य तो ऐसे ऐसे खुले की क्या कहने। जबरदस्त।
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद उदय जी। वैसे वेद जी का ये मेरा पहला उपन्यास था। और कौन कौन से उपन्यास पढ़ने चाहिए मुझे? सुझाव हो तो जरूर दीजिये।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर अंदाज़ रोचक शैली।
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर
सराहना के लिए धन्यवाद अनिता जी 🙏
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर!🙏
हटाएंसुंदर श्रमसाध्य कार्य हेतु शुभकामनाएं, सार्थक लेखन..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी अवश्य पधारें ..
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए आभार!🙏 जिज्ञासाजी मैं आपका ब्लॉग जरूर देखूंगा।
हटाएंवेद जी घुमावदार कथानक के महारथी हैं।आपको लगता है कि आप कहानी समझ रहे हैं लेकिन फिर एक ट्विस्ट आपका दिमाग हिला देता है। किताब के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख। मिलता है तो पढ़ता हूँ।
जवाब देंहटाएंजी जरूर पढ़िये, बढ़िया पुस्तक है। वेद प्रकाश शर्मा जी की कुछ अन्य किताबें के बारे में भी बताईये। कारीगर पढ़ने के बाद वेद जी की अन्य किताबें पढ़ने की इच्छा हो रही है।
जवाब देंहटाएंMeri badi iccha hai sir g karigar padhne ki pr mai pdf download nahi kr pa raha hu please kaise padhu mujhe bataye..🙏
जवाब देंहटाएंCasinos in Malta - Filmfile Europe
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