आशुतोष की अश्रुधारा ।

      ।  आशुतोष कीअश्रुधारा ।




                                                     हिमालय के हिमशिखर पर ध्यानमग्न

श्वेतवर्ण  शशि शेखर, कर आँख बंद

 दीनबंधु महादेव देख रहे दिव्यदृष्टि से 

  विरोधाभाषी विश्व की ये विचित्र लीला।

 विरुपाक्ष वैरागी की बहती अश्रुधाराओं से

भीग रहा भूतनाथ भोले भंडारी का कंठ नीला।।


सर्वेश्वर  समाधी में होकर  ध्यानमग्न 

  सर्वज्ञ  कर रहा ये जानने का प्रयत्न।

क्यों शब्दों के अर्थ का अनर्थ कर डाला ?

इसी लिए क्या तुमको जीवन देकर

 पिया था खुद मैंने विष का प्याला ।।


जीव,  जीवन  को समझ सकें 

और  सत्य को जान सके

 योग का ज्ञान दिया,

तंत्र का विज्ञानं दिया 

अनुराग दिया, वैराग दिया,

नृत्य , कला ,संगीत ,

मधुर सुर सप्तक देकर

जीवन  का वरदान दिया ।



न माँगा कभी स्वयं के लिए  कुछ 

 चाहा मात्र इतना  की तुम  खुद, 

भांग धतूरा, निज व्यसन -बुराई

सारा सब  मुझ पर अर्पण कर दो ।

काम क्रोध मद मोह छोड़ कर

  मेरे चरणो के  सम्मुख धर दो ।।


और इतना भी तुम कर न सके 

माँगा था थोड़ा, कुछ भी दे न सके 

और निज स्वार्थ सिद्ध करते हो ।

क्यों बिना मेरा नाम लिए  

नशेडी भंगेड़ी कहलाने से 

 क्यों फिर तुम डरते हो   ।।


संसार को समझने मै प्रयासरत 

चिंतित चंद्रेश्वर को देखकर 

रो पड़ा साथ उनके ये ब्रह्माण्ड सारा।

और फिर निरंतर बहती रही 

आदिदेव आशुतोष की अश्रुधारा ।।



YourQuote.in/arvind




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4 टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर रचना।
    --
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    उत्तर
    1. धन्यवाद श्रीमान 🙏आपको भी महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

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  2. श‍िव के तत्व तक पहुंचाती कव‍िता...वाह अरव‍िंंद जी क्या खूब ल‍िखा है क‍ि
    सर्वेश्वर समाधी में होकर ध्यानमग्न

    सर्वज्ञ कर रहा ये जानने का प्रयत्न।

    क्यों शब्दों के अर्थ का अनर्थ कर डाला ?

    इसी लिए क्या तुमको जीवन देकर

    पिया था खुद मैंने विष का प्याला ।।

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  3. सराहना के लिए धन्यवाद अलकनंदा जी.. महादेव आपका कल्याण करें व आपका दिन शुभ हो ..

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