फंतासी उपन्यास लेखन के पिछले भाग में हमने जाना कि उपन्यास क्या है ? अपने फंतासी उपन्यास के लिए काल्पनिक दुनिया की रचना कैसे करे? और hero's journey वर्तुल के कुछ अहम तत्वों बारे में भी जाना।
अगर आपने अभी तक फंतासी उपन्यास लेखन का पहला भाग नही पढ़ा तो आप उस लेख को यहाँ से पढ़े।
फंतासी उपन्यास कैसे लिखें? (1) hero's journey
आज के लेख में हम जानेंगे चरित्र निर्माण, संवाद, कहानी में रोचकता व स्टोरीग्राफ के बारे में।
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चरित्र निर्माण
चरित्र निर्माण में आपको सबसे पहले यह निर्णय लेना होगा की कहानी में मुख्य पात्र कितने है , यानि कि वो पात्र जो कहानी को आगे बढा रहे है या नही, बिना उद्देश या कहानी में जिन चरित्रों की जरुरत नही उन्हें जबरदस्ती कहानी में नही ठूसना चाहिए . तत्पश्चात हमें यह तय करना है कि हमारे इस फंतासी उपन्यास में चरित्र किस प्रकार के होने वाले हैं।
चरित्रों के प्रकार -
कहानी में चरित्र कई प्रकार के होते है, दयालू ,घमंडी,बदमाश,आदर्शवादी आदि .. लेकिन यहाँ हम इस् प्रकार के चरित्रों की बात नही कर रहे ..
(यहाँ पर चरित्रों का अर्थ उनके गुणों/ अच्छाई/ बुराई के संदर्भ पर नही लिया जा रहा है )
यहाँ हम चरित्रों के जिस 'प्रकार' की बात कर रहे है वो एक अलग ही प्रकार है
लेखन की दृष्टी में सिर्फ दो ही प्रकार के चरित्र होते है - सरल और जटिल . ( इन दो प्रकारों के अलावा और भी कुछ प्रकार होते हैं , लेकिन वे अन्य प्रकार इन्ही २ प्रकारों का रूप होते है )
जिन्हें राउंड करैक्टर और फ्लैट करैक्टर कहा जाता है .
राउंड करैक्टर
ये कहानी के वह चरित्र होते है, जो तार्किक और जटिल होते हैं।
अगर आप एक एसा चरित्र निर्मित करना चाहते है जो सचाई के धरातल के अधिक निकट हो, तो अपनी कहानी में कम से कम एक गोल चरित्र जरुर बनायें .. और यह भी कतई जरुरी नही की कहानी का प्रमुख पात्र round charactor ही हो। (असल में राउंड करैक्टर मुख्य भूमिकाओं में बेहद कम होते है )
मगर क्यूंकि असल दुनिया में असली व्यक्ति जटिल होते है, इसलिए यथार्थ चित्रण के लिए गोल चरित्र अनिवार्य होते है।
विशेषताएँ-
गोल चरित्र क्या करने वाले हैं ये आप कभी समझ नही सकते .. वे एक अबूझ पहेली के जैसे होते हैं .
और कहानी को रोचक बनाने में बहुत सहायक होते है. मेरी किताब अलबेला में 'अजूबा भी एक गोल चरित्र है , जो क्या करने आया है किसी को पता नही, लेकिन जैसे जैसे कहानी आगे बढती है इसका मकसद सामने आ जाता है जो की कहनी में एक महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आता है।
फ्लैट करैक्टर - समतल चरित्र
फ्लैट चरित्र बहुत ही सीधे -साधे किस्म के चरित्र होते है, ये कोई भी हो सकते है , नायक -नायिका खलनायक आदि।
कहानी की शुरुवात में ही इनका मकसद सामने आ जाता है. जैसे कॉमिक्स में सुपर हीरो होते है - नागराज ,या डोगा !
इनका एक ही मकसद है दुनिया को बचाना . इस प्रकार के चरित्र फ्लैट करैक्टर हैं ..
प्रसिद्ध जासूसी उपन्यास श्रृंखला - शर्लाक होम्स में शर्लाक होम्स एक फ्लैट करैक्टर है , जिसका मकसद मात्र केस सुलझाना है .
जबकी डॉक्टर वाटसन एक गोल चरित्र है, क्यूंकि वो यथार्थवादी और जालित है .. केस सुलझाने के अलावा उसकी कुछ निजी समस्याएं भी हैं।
कभी कभी कहानी में चरित्रों का रूपांतरण होता रहता है, और एक फ्लैट चरित्र, राउंड करैक्टर भी बन जाता है।
जैसे आप जानते है कि मार्वल कॉमिक्स में हल्क एक फ्लैट करैक्टर है , जिसे तोड़-फोड़ करना बहुत पसंद है, और डॉक्टर ब्रुस बैनर एक गोल चरित्र है, जो हमेशा से अपनी हलक वाली शक्सियत से छुटकारा पाना चाहता है।
लेकिन 'अवेंजर्स एंड गेम' में जब 'हल्क', ;प्रोफेसर हल्क' में परिवर्तित हो जाता है तो वो अब एक गोल चरित्र बन जाता है , क्युकी वो अब mature हो चुका है और उसका मकसद भी बदल चुका है ।
आपको भी अब फैसला लेना होगा कि आपका नायक राउंड है या फ्लैट ?
(याद रखिये - राउंड चरित्र भले ही वास्तविक लगे किन्तु फ्लैट चरित्र पाठकों को जल्दी पसंद आते है, क्यूंकि ये जल्दी समझ आते हैं.)
हर चरित्र की अपनी कुछ विशेषता भी होनी चाहिए , ताकि वो उबाऊ न लगे। और पाठकों को ये भी न लगे कि कहानी में ये चरित्र नही होता तो भी कहानी लिखी जा सकती थी।
और जैसा कि मैंने पिछले लेख में बताया था कि खलनायक भी अपनी नजरों में एक नायक ही होता है .
तो उसके चरित्र निर्माण में इन बातों का विशेष ध्यान दें-
उसका असल मकसद क्या है ? वह इतना दुष्ट कैसे बना ? उसकी विचारधारा क्या है आदि . ( इसके पीछे की भी एक कहानी आपके पास होनी चाहिए )
संवाद लेखन
संवाद का अर्थ है सम + वाद यानि की जब समान रूप से वार्तलाप हो रही हो तो वो संवाद कहलाता है . . कहानी में जब दो या दो से अधिक लोग बात कर रहे हो तो वो संवाद कहलाता है।
संवाद लेखन में निम्न बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है।
१ - संवाद स्पष्ठ हो , और कहानी को आगे बढ़ने में सहायक हो। .
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दोस्तों कहानी को पूरा करने के लिए कुछ लोग जबरदस्ती के संवाद डालते है, जिनका कहानी से कुछ लेना देना नही होता , ऐसा करने से बचे . बिना मतलब के संवाद कहानी को नीरस बना सकते है।
२ - संभव हो तो संवादों में मुहावरों, लोकोक्तियों का प्रयोग भी जरुर करे।
३ - 'कोन व्यक्ति क्या कह रहा है' इसका विशेष ध्यान रखें!
- यदि आपका चरित्र उच्च कोटि का विद्वान है तो उसके संवादों से उसकी प्रतिभा और उसके ज्ञान का पता लग जाना चाहिएं।
४ - यदि कोई एसा करैक्टर है जो स्वभाव से मसखरा है तो उसके संवाद ऐसे होने चाहिए कि पाठकों की हसीं फूट पड़े . लेकिन इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि देश -काल और परिस्तिथियां भी हसी -मजाक के लिए उपयुक्त हो।
५ - कहानी में एक ही शब्द एक पंक्ति में बार -बार न दोहराए , जरुरी स्तिथि में उसकी जगह पर उसका पर्यायवाची शब्द इस्तेमाल करे।
६- संवादों के साथ साथ चरित्र की गति -विधियों/ बॉडी लैंग्वेज का भी वर्णन करे।
जैसे - " है भ्राता राम! पिताश्री आपका वियोग नही सह पाए, और उन्होंने देहत्याग कर, ये म्र्त्युलोक सदा-सदा के लिए छोड़ दिया ..
अनुज भरत की ये बात सुनकर राम की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी , और अपने माथे पर हाथ रखकर वो एकदम आवाक हो गये ..
सबके भाग्यविधाता प्रभु श्रीराम अब स्वयं किंकर्तव्यविमूढ़ थे, मानो उनका शब्दकोष ही खत्म हो गया हो..
उपर्युक्त उदाहरण में जैसे ही राम ने पिता के स्वर्गवास की खबर सुनी , उन्होंने कुछ नही कहा, लेकिन उनकी दशा का भलीभांति वर्णन किया गया है कि वो शोकाकुल हैं।
जरुरी नही है की हर स्तिथि में संवादों के माध्यम से ही कहानी को आगे बढाया जाय , जहाँ पर संभव हो चरित्रों के हाव- भाव और उसकी मनोदशा का वर्णन भी करना चाहिए।
रोचकता-
कहानी में रोचकता बनाने के लिए आप कहानी को इस तरह से लिखें, कि पाठक आगे क्या होने वाला है, ये जानने के लिए उत्सुक हो जाय, और एक ही बैठक में आपकी किताब पढ़ ले।
इसके लिए जरुरी है कि आप कहानी की शुरूआत कुछ इस तरह से करे कि पाठक आगे की कहानी पढने पर मजबूर हो जाये . क्यूंकि अधिकांश पाठक सुरुवात के एक दो पेज पढ़कर ही तय कर लेते है की किताब पढनी है या नही।
जहाँ तक संभव हो कहानी को रहस्यपूर्ण बनाने का प्रयास करें।
याद रखे - रहस्य रोमांच और रोचकता दोनों की कुंजी है।
उदाहरण के लिए आप एक विज्ञानं गल्प फंतासी लिख रहे है जो समय यात्रा पर आधारित है।
नायक को समययन्त्र मिल चुका है ,और वो सबकुछ ठीक करने के लिए वक्त में पीछे जाने ही वाला वाला है की तभी एक अधेड़ उम्र का आदमी आता है, और जोर से चिल्लाया है - एसा मत करो !
लेकिन समययन्त्र में उलटी गणना शुरू हो चुकी है . मगर फिर भी नायक ने अचानक से सामने आये उस अजीबो -गरीब आदमी से कहा -
"क्यूँ ?"
" इसका अंजाम बहुत ही खतरनाक होने वाला है !" वो रहस्यमय आदमी बोला।
" लेकिन तुम हो कोन ?" नायक बोला .
" मै तुम्हारा ही भविष्य का रूप हूँ !"
नायक इससे पहले कुछ कह पाता, उसका समययन्त्र उसे वक़्त में पीछे ले गया .. कितना पीछे ये नायक को भी मालूम नही था . अब नायक के सामने दो प्रश्न थे.. ये कोनसा समयकाल है , और वो आदमी जो उसे चेतावनी दे रहा था क्या वो सचमे ही उसके भविष्य का रूप था ?
ये सब सवाल अब सिर्फ नायक के ही सवाल नही रह गये , ये अब पाठकों के भी सवाल बन चुके है , इन्ही सवालो के जवाब पाठकों को अब पूरी किताब ख़त्म करने पर मजबूर कर देंगे ( अगर आगे की कहानी भी इनती ही रोचक हो तो )
कहानी में रोचकता के साथ -साथ अब पाठक पर इस रहस्य को सुलझाने का एक मानसिक दबाव भी है।
बताना और दिखाना (showing & telling )
नये लेखक शुरुवात में हर दृश्य को अपने शब्दों में बताने लगते है , जबकि मुख्य जरुरी स्थिति में दृश्यों को बनाने की बजाय दिखाना जादा जरुरी है।
अब आपके सामने एक सवाल घूम रहा होगा कि कहानी में तो बताया ही जाता है , फिर दिखाया कैसे जाय ?
इसको अब एक उदाहरण के साथ समझेंगे -
कहानी बताना-
श्याम को राधा से प्रेम हो गया. लेकिन वो अपने दिल की बात चाहकर भी उसे नही बता सका।
दिखाना -
श्याम ने राधा को जैसे ही देखा, उसकी आँखों की पुतिलियाँ जैसे फ़ैल सी गयी।
श्याम के होंठो पर अचानक एक मुस्कान आ गयी. और उसका दिल जोर- जोर से धडकने लगा।
और जमीन पर बैठ कर उसने अपने दोनों हाथ अपने गालो पर रख दिए और दूर खड़ी राधा को देखने लग गया।.१ घंटा कब बीत गया उसे पता ही न चला।
उसने चाहा कि उस लड़की से उसका परिचय पूछूं। कदम आगे बढ़ाये , लेकिन वो राधा की और जाने की बजाय किसी दूसरी दिशा में आगे न बढ़ गया। जैसे उसके शरिर पर अब उसका काबू ही न रहा गया हो.. श्याम को पता नही कि उसे आखिर अचानक क्या हो गया है।
लेकिन अब आप जान ही गए होंगे की श्याम को क्या हुआ है ..
यहाँ पर दो अलग अगल वाक्यों में एक ही बात बताई गयी है , लेकिन कोनसा वाक्य बेहतर है ये आप समझ सकते हो.. इसलिए बताने की बजाय दृश्यों को दिखाने पर जोर दीजिये . क्योंकि बता कर हम सिर्फ 25% ही अपनी भावनाओं को व्यक्त करते है। बाकी का 75% काम हमारे हाव्-भाव या बॉडीलैंग्वेज करती है।
इसी मनोविज्ञान को आप अपनी कहानी में प्रयोग क्र सकते हो .
लेकिन इस बात का ध्यान रखना जरुरी है कि जहाँ आवश्यकता है और जो दृश्य कहानी में अहम् योगदान देने वाला है ,वही इस प्रकार का विवरण दे अन्यथा जरुरत से जादा जानकारी कहानी को बोझिल बना सकते हैं।
ग्राफ -
अपनी कहानी का एक ग्राफ जरुर बनाइये, जिसमे कहानी की शुरुवात उतार चढ़ाव पहले से जोड़ लीजिये इससे आपको काफी सहायता मिलेगी कहानी को बेहतर बनाने में।
निचे jk rolling की प्रसिद्ध उपन्यास हैरी पॉटर का स्टोरी ग्राफ दिया गया है इसके आधार पर आप अपनी कहानी का ग्राफ भी बड़ी आसानी से बना सकते है।
ग्राफ की सहायता से आप अपनी कहानी को एक सुनिश्चित ढांचे में दाल सकते हो और आसानी से महत्वपूर्ण बिन्दुओं को अध्यायों में बाँट सकते हो ..
ये लेख आपको कैसा लगा अपनी राय कमेन्ट में जरुर दें .
5 टिप्पणियाँ
बहुत बारीकी से आपने उपयोगी जानकारी प्रस्तुत की है, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए धन्यवाद कविता जी 🙏
हटाएंबहुत सुंदर जानकारी
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए आभार आपका 🙏
हटाएंबेहतरीन जानकारी । फंतासी लेखन में अपना हाथ आजमाने वालो के लिए बहुत उपयोगी है। दोनों पोस्ट पूरी पढ़ी ज्ञानवर्द्धक है। मेरे भी काम आएगी । ऐसी ही और जानकारी साझा कीजियेगा । धन्यवाद
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